हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, सोलह वर्ष की आयु में देवी शैलपुत्री अत्यंत सुंदर थीं और उन्हें गोरा रंग प्राप्त था। अपने अत्यधिक गोरे रंग के कारण उन्हें देवी महागौरी के नाम से जाना जाता था।
नवरात्रि पूजा
नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है।
ऐसा माना जाता है कि राहु ग्रह देवी महागौरी द्वारा शासित है।
देवी महागौरी और साथ ही देवी शैलपुत्री का पर्वत बैल है और इस वजह से उन्हें वृषारुधा (वृषरुधा) भी कहा जाता है। देवी महागौरी को चार हाथों से दर्शाया गया है। वह एक दाहिने हाथ में त्रिशूल रखती है और दूसरे दाहिने हाथ को अभय मुद्रा में रखती है। वह एक बाएं हाथ में डमरू को सुशोभित करती है और दूसरे बाएं हाथ को वरद मुद्रा में रखती है।
जैसा कि नाम से पता चलता है, देवी महागौरी अत्यंत निष्पक्ष हैं। अपने गोरे रंग के कारण देवी महागौरी की तुलना शंख, चंद्रमा और कुंड (कुंड) के सफेद फूल से की जाती है। वह केवल सफेद कपड़े पहनती हैं और इसी वजह से उन्हें श्वेतांबरधारा (श्वेतांबरधरा) के नाम से भी जाना जाता है।
आरती
जय महागौरी जगत की माया। जय उमा भवानी जय महामाया॥
हरिद्वार कनखल के पासा। महागौरी तेरा वहा निवास॥
चन्द्रकली और ममता अम्बे। जय शक्ति जय जय माँ जगदम्बे॥
भीमा देवी विमला माता। कौशिक देवी जग विख्यता॥
हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा। महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा॥
सती (सत) हवन कुंड में था जलाया। उसी धुएं ने रूप काली बनाया॥
बना धर्म सिंह जो सवारी में आया। तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया॥
तभी माँ ने महागौरी नाम पाया। शरण आनेवाले का संकट मिटाया॥
शनिवार को तेरी पूजा जो करता। माँ बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता॥
भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो। महागौरी माँ तेरी हरदम ही जय हो॥